Thursday, December 24, 2009

दूत बना डाकिया (डाकिया डाक लाया-6)

डाकिया यानी संदेशवाहक या दूत। संदेशों को शीघ्रता से इधर से उधर पहुंचाए। आज की हिन्दी में दूत शब्द का सीधा सीधा प्रयोग कम ही होता है मगर राजदूत शब्द भरपूर चलन में है और राजनयिक-वैदेशिक खबरों में इसका उल्लेख रहता है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र और उड़ीसा में एक जातीय उपनाम है राऊत । यह राजदूत का ही अपभ्रंश है। राऊत मूलतः एक शासन द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि होता था जो गांव में शासन के निर्देश पहुंचाने के अलावा लगान की वसूली भी करता था। दूत के अन्य पर्याय हैं हरकारा , डाकिया, संदेशहर, प्रतिनिधि आदि। दूत शब्द के मूल में हैं संस्कृत की दू,दु अथवा द्रु धातुए हैं जिनमें तीव्र गति का भाव शामिल है। द्रु का मतलब है भागना, बहना , हिलना-डुलना, गतिमान रहना आदि। द्रु से बना द्रावः जिससे हिन्दी में बना दौड़ या दौड़ना।
अब दु से बने दूत और द्रु से बने द्रुत शब्द पर गौर करें तो भाव दोनों का एक ही है। द्रुत का मतलब है तीव्रगामी, फुर्तीला, आशु गामी आदि। यही सारे गुण दूत में भी होने चाहिए। द्रा और द्राक् का मतलब भी तुरंत , तत्काल , फुर्ती से और दौड़ना ही होता है। जान प्लैट्स ने द्राक् से ही हिन्दी के डाक शब्द की व्युत्पत्ति मानी है । दूत के अर्थ में एक अन्य शब्द पायक या पायिकः भी है। यह भी पैदलसिपाही के अर्थ में है । पैदल तेज तेज भागना।
द्रु से ही बना है द्रव जिसका मतलब हुआ घोड़े की भांति भागनाया पिघलना, तरल, चाल, वेग आदि । द्रव का ही एक रूप धाव् जिसका मतलब है किसी की और बढ़ना, किसी के मुकाबले दौड़ना। मराठी में धाव का मतलब दौड़ना ही है। धाव् से बने धावक हुआ दौड़ाक यानी जिसका काम ही दौड़ना हो। जाहिर है यही तो प्राचीनकाल में दूत की प्रमुख योग्यता थी। द्रु के तरल धारा वाले रूप में जब शत् शब्द जुड़ता है तो बनता है शतद्रु अर्थात् सौ धाराएं। पंजाब की प्रमुख नदी का सतलज नाम इसी शतद्रु का अपभ्रंश है।
साभार : शब्दों का सफर

5 comments:

Akanksha Yadav said...

dilchasp jankari.

Bhanwar Singh said...

बहुत खूब...जानकारियों का पिटारा.

Dr. Brajesh Swaroop said...

ज्ञान चक्षु खुल गए गुरुवर....साधुवाद.

raghav said...

विस्तृत रूप में बेहतरीन जानकारी...आभार.

संजय भास्‍कर said...

बेहतरीन जानकारी...आभार