चिट्ठियाँ संवेदना की संवाहक हैं, भावनाओं की खूबसूरत अभिव्यक्ति हैं और कई बार जब कहने के लिए शब्द कम पड़ते हैं तो चिट्ठियाँ उसकी भरपाई कर देती हैं। यह सही है कि ई-मेल और सोशल मीडिया के इस दौर में चिट्ठियाँ लिखने की ललक कम हुई है, पर अभी भी इनका प्रचलन कम नहीं हुआ है। हमारे दिलों के एक कोने में चिट्ठियाँ अभी भी सहेज कर रखी हुई हैं। ये वे चिट्ठियाँ हैं, जो हमसे बातें करती हैं, अपनों की यादों को सहेजती हैं और अतीत से नाता जोड़ती हैं। पिछले दिनों एक पत्रिका पर नजर पड़ी तो यह खूबसूरत कविता पढ़ने का मोह न छोड़ सका और इसे आप सबके साथ भी शेयर कर रहा हूँ -
चिट्ठी में है मन का प्यार, चिट्ठी है घर का अख़बार।
इसमें सुख-दुख की हैं बातें, प्यार भरी इसमें सौगातें।
कितने दिन, कितनी ही रातें, तय कर आई मीलों पार।
चिट्ठी आई मीलों पार।
यह आई मम्मी की चिट्ठी, लिखा उन्होंने प्यारी किट्टी!
मेहनत से तुम पढ़ना बेटी, पढ़-लिखकर होगी होशियार।
चिट्ठी आई मीलों पार।
पापा पोस्टकार्ड लिखते हैं, घने-घने अक्षर दिखते हैं।
जब आता हैं बड़ा लिफाफा, समझो चाचा का उपहार।
चिट्ठी आई मीलों पर।
छोटा-सा कागज बिन पैर, करता दुनिया भर की सैर।
नए-नए संदेश सुनाकर, जोड़ रहा है दिल के तार।
चिट्ठी आई मीलों पर।
-गौरी दाधीच,
माकड़वाली रोड, अजमेर (राजस्थान)
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