Saturday, December 4, 2010

डाक टिकट बनीं पत्र मित्रता

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी संग्रह करना बहुत से बच्चों की हॉबी का हिस्सा होता है, कोई अखबार में छपी रेसीपीज तो कोई विभिन्न देशों की मुद्राएं इकटी करने में लगा रहता है। डाक-टिकटों का संग्रह विश्व के सबसे लोकप्रिय शौकों में से एक है। डाक-टिकटों का संग्रह हमें स्वाभाविक रूप से सीखने को प्रेरित करता है, इसलिए इसे प्राकृतिक शिक्षा-उपकरण कहा जाता है। डाक-टिकट किसी भी देश की विरासत की चित्रमय कहानी हैं। डाक टिकटों का एक संग्रह विश्वकोश की तरह है, जिसके द्वारा हम अनेक देशों के इतिहास, भूगोल, संस्कृति, ऎतिहासिक घटनाएं, भाषाएं, मुद्राएं, पशु-पक्षी, वनस्पतियों और लोगों की जीवनशैली एवं देश के महारथियों के बारे में बहुत सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

डाक टिकट का इतिहास
डाक-टिकट का इतिहास करीब 169 साल पुराना है। विश्व का पहला डाक टिकट 1 मई 1840 को ग्रेट ब्रिटेन में जारी किया गया था, जिसके ऊपर ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया का चित्र छपा था। एक पेनी मूल्य के इस टिकट के किनारे सीधे थे यानी टिकटों को अलग करने के लिए जो छोटे छोटे छेद बनाए जाते हैं, वे प्राचीन डाक टिकटों में नहीं थे। इस समय तक उनमें लिफाफे पर चिपकाने के लिए गोंद भी नहीं लगा होता था। इसके उपयोग का प्रारंभ 6 मई 1840 से हुआ। टिकट संग्रह करने में रूचि रखने वालों के लिए इस टिकट का बहुत महत्व है, क्योंकि इस टिकट से ही डाक-टिकट संग्रह का इतिहास भी शुरू होता है।

भारत में पहला डाक-टिकट
1 जुलाई 1852 में सिंध प्रांत में जारी किया गया, जो केवल सिंध प्रांत में उपयोग के लिए सीमित था। आधे आने मूल्य के इस टिकट को भूरे कागज पर लाख की लाल सील चिपका कर जारी किया गया था। यह टिकट बहुत सफल नहीं रहा क्योंकि लाख टूटकर झड़ जाने के कारण इसको संभालकर रखना संभव नहीं था। फिर भी ऎसा अनुमान किया जाता है कि इस टिकट की लगभग 100 प्रतियां विभिन्न संग्रहकर्ताओं के पास सुरक्षित हैं। डाक-टिकटों के इतिहास में इस टिकट को सिंध डाक के नाम से जाना जाता है। बाद में सफेद और नीले रंग के इसी प्रकार के दो टिकट वोव कागज पर जारी किए गए लेकिन इनका प्रयोग बहुत कम दिनों तक रहा, क्योंकि 30 सितंबर 1854 को सिंध प्रांत पर ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकार होने के बाद इन्हें बंद कर दिया गया।ये एशिया के पहले डाक-टिकट तो थे ही, विश्व के पहले गोलाकार टिकट भी थे। संग्रहकर्ता इस प्रकार के टिकटों को महत्वपूर्ण समझते हैं और आधे आने मूल्य के इन टिकटों को आज सबसे बहुमूल्य टिकटों में गिनते हैं।

डाकटिकट संग्रह बना मनोरंजन
समय के साथ जैसे-जैसे टिकटों का प्रचलन बढ़ा टिकट संग्रह का शौक भी पनपने लगा। 1860 से 1880 के बीच बच्चों और किशोरों ने टिकटों का संग्रह करना शुरू कर दिया था। दूसरी ओर अनेक वयस्क लोगों में भी यह शौक पनपने लगा और उन्होंने टिकटों को जमा करना शुरू किया, संरक्षित किया, उनके रेकार्ड रखे और उन पर शोध आलेख प्रकाशित किए। जल्दी ही इन संरक्षित टिकटों का मूल्य बढ़ गया क्योंकि इनमें से कुछ तो ऎतिहासिक विरासत बन गए थे और बहुमूल्य बन गए थे। ग्रेट ब्रिटेन के बाद अन्य कई देशों द्वारा डाक-टिकट जारी किये गए।

1920 तक यह टिकट संग्रह का शौक आम जनता तक पहुंचने लगा। उनको अनुपलब्ध तथा बहुमूल्य टिकटों की जानकारी होने लगी और लोग टिकट संभालकर रखने लगे। नया टिकट जारी होता तो उसे खरीदने के लिए डाकघर पर भीड़ लगनी शुरू हो जाती थी। लगभग 50 वर्षो तक इस शौक का नशा जारी रहा। इसी समय टिकट संग्रह के शौक पर आधारित टिकट भी जारी किए गए। जर्मनी के टिकट में टिकटों के शौकीन एक व्यक्ति को टिकट पर अंकित बारीक अक्षर आवर्धक लेंस (मैग्नीफाइंग ग्लास) की सहायता से पढ़ते हुए दिखाया गया है। आवर्धक लेंस टिकट-संग्रहकर्ताओं का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। एक रूपये मूल्य का भारतीय टिकट, यू.एस. का टिकट तथा बांग्लादेश के लाल रंग के तिकोने टिकटों का एक जोड़ा टिकट संग्रह के शौक पर आधारित महत्वपूर्ण टिकटों में से हैं।

1940-50 तक डाक-टिकटों के शौक ने देश-विदेश के लोगों को मिलाना शुरू कर दिया था। टिकट इकटा करने के लिए लोग पत्र-मित्र बनाते थे। अपने देश के डाक-टिकटों को दूसरे देश के मित्रों को भेजते थे और दूसरे देश के डाकटिकट मंगवाते थे। पत्र-मित्रता के इस शौक से डाक-टिकटों का आदान प्रदान तो होता ही था लोग विभिन्न देशों के विषय में अनेक ऎसी बातें भी जानते थे, जो किताबों में नहीं लिखी होती हैं। उस समय टीवी और आवागमन के साधन आम न होने के कारण देश विदेश की जानकारी का ये बहुत ही रोचक साधन बने। पत्र-पत्रिकाओं में टिकट से संबंधित स्तंभ होते और इनके विषय में बहुत सी जानकारियों को जन सामान्य तक पहुंचाया जाता। पत्र-मित्रों के पतों की लंबी सूचियां भी उस समय की पत्रिकाओं में प्रकाशित की जाती थीं।

धीरे धीरे डाक टिकटों के संग्रह की विभिन्न शैलियों का भी जन्म हुआ। लोग इसे अपनी जीवन शैली, परिस्थितियों और रूचि के अनुसार अनुकूलित करने लगे। इस परंपरा के अनुसार कुछ लोग एक देश या महाद्वीप के डाक-टिकट संग्रह करने लगे तो कुछ एक विषय से संबंधित डाक-टिकट। आज अनेक लोग इस प्रकार की शैलियों का अनुकरण करते हुए और अपनी-अपनी पसंद के किसी विशेष विषय के डाक टिकटों का संग्रह करके आनंद उठाते है। विषयों से संबंधित डाक टिकटों के संग्रह में अधिकांश लोग पशु, पक्षी, फल, फूल, तितलियां, खेलकूद, महात्मा गांधी, महानुभावों, पुल, इमारतें आदि विषयों और दुनिया भर की घटनाओं के रंगीन और सुंदर चित्रों से सजे डाक टिकटों को एकत्रित करना पसंद करते है।

प्रत्येक देश हर साल भिन्न भिन्न विषयों पर डाक-टिकट जारी करते हैं और जानकारी का बड़ा खजाना विश्व को सौप देते हैं। इस प्रकार किसी विषय में गहरी जानकारी प्राप्त करने के लिए उस विषय के डाक टिकटों का संग्रह करना एक रोचक अनुभव हो सकता है। डाक-टिकट संग्रह का शौक हर उम्र के लोगों को मनोरंजन प्रदान करता है। बचपन में ज्ञान एवं मनोरंजन, वयस्कों में आनंद और तनावमुक्ति तथा बड़ी उम्र में दिमाग को सक्रियता प्रदान करने वाला इससे रोचक कोई शौक नहीं। इस तरह सभी पीढियों के लिए डाक टिकटों का संग्रह एक प्रेरक और लाभप्रद अभिरूचि है।

5 comments:

Dr. Brajesh Swaroop said...

डाक टिकटों का शौक तो हमें भी है, पर इसके इस खूबसूरत पहलू से परिचय के लिए आभार.

Dr. Brajesh Swaroop said...

डाक टिकटों का शौक तो हमें भी है, पर इसके इस खूबसूरत पहलू से परिचय के लिए आभार.

S R Bharti said...

डाक-टिकट संग्रह का शौक हर उम्र के लोगों को मनोरंजन प्रदान करता है। बचपन में ज्ञान एवं मनोरंजन, वयस्कों में आनंद और तनावमुक्ति तथा बड़ी उम्र में दिमाग को सक्रियता प्रदान करने वाला इससे रोचक कोई शौक नहीं। इस तरह सभी पीढियों के लिए डाक टिकटों का संग्रह एक प्रेरक और लाभप्रद अभिरूचि है।

Bhanwar Singh said...

बहुत सुन्दर जानकारी मिली...आभार.

raghav said...

डाक-टिकट संग्रह का शौक वाकई उत्तम है. इसका कोई सानी नहीं.