चिट्ठियाँ भला किसे नहीं भातीं। न शब्दों की बंदिश और न एक ही बार लिखने का झंझट। चिट्ठियों के माध्यम से तो भाव भी अक्षर (जिसका क्षय नहीं होता) हो जाते हैं। उन अक्षरों को पढ़कर चिट्ठी पाने वाला लिखने वाले की मन:स्थिति का भी पता लगा लेता था। कभी राजनेताओं से लेकर फ़िल्मी सितारों की फैन-फॉलोइंग उनको प्राप्त चिट्ठियों से आंकी जाती थी। गांधी जी को तो इतने ज्यादा पत्र प्राप्त होते थे कि वे दोनों हाथ से पत्रों का जवाब लिखा करते थे। देश के किसे भी कोने में मात्र गांधी लिखी चिट्ठियां उन तक डाक विभाग सकुशल पहुंचा देता था। जेल में रहते हुए नेहरू ने इंदिरा गांधी को जो पत्र लिखे, उन्होंने इंदिरा के व्यक्तित्व को गढ़ने में अहम भूमिका निभाई। इन पत्रों ने न जाने कितने इतिहास रचे और आज भी लाखों रूपये में नीलम होते हैं।
चिट्ठियां हमारे परिवेश का अभिन्न अंग रही हैं। लोकगीतों में चिट्ठियों का बड़ा ही सटीक और मार्मिक वर्णन मिलता है। आधुनिक से लेकर पुरातन साहित्य में भी चिट्ठियों के तमाम वर्णन हैं। चिट्ठियाँ तब से लिखी जा रही हैं, जब से सभ्यता का प्रादुर्भाव हुआ होगा और मानव ने लिखना सीखा होगा। माना जाता है कि रुक्मिणी द्वारा श्रीकृष्ण को लिखी गई चिट्ठी 'विश्व का पहला 'प्रेम पत्र' थी। लोक गीतों में भी इसका वर्णन बखूबी मिलता है।
'अंचरा में फाड़ी रु
रुक्मिणी कगजा बनाओल
नयन काजल मसिहान
चारों कोना लिखले
रुक्मिणी छेम कुशलवा
बीचे बीचे रुक्मिणी बयान।'
ऐसी ही न जाने कितने बातें और विरासत इन चिट्ठियों ने सहेज कर रखा है और इन चिट्ठियों के माध्यम से ही वे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संचारित होती रहती हैं। याद आती हैं हसरत मोहानी की लिखी पंक्तियाँ -
लिक्खा था अपने हाथों से जो तुमने एक बार।
अब तक हमारे पास है वो यादगार खत ।।
वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तकनीक फ्रेंडली हैं । सोशल मीडिया और ई-मेल के माध्यम से लोगों से जुड़े रहते हैं, पर न तो हर कोई मेल करता है और न हर किसी का सोशल मीडिया पर एकाउंट है। भारत जैसे देश में जहाँ अभी भी इंटरनेट की पहुँच बमुश्किल 15 फीसदी है, वहाँ तो पत्रों की अहमियत और भी बढ़ जाती है। ऐसे में लोगों से जुड़ने के लिए पत्र से बेहतर जरिया नहीं हो सकता।
प्रधानमंत्री मोदी कितने ही टेक सेवी हों पर दूसरी तरफ यह भी एक सच्चाई है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके नाम आने वाली चिट्ठियों की आमद ने नए रिकार्ड बना दिए हैं। जुलाई के बाद से हर महीने प्रधानमंत्री मोदी के नाम औसतन डेढ़ लाख चिट्ठियाँ आ रही हैं। लोग अमूमन पाँच हजार पत्र प्रतिदिन मोदी को भेज रहे है। कभी-कभी यह आँकड़ा दस हजार तक पहुँच जाता है।
राजधानी दिल्ली के निर्माण भवन स्थित पोस्ट आॅफिस यूँ तो पहले भी अतिविशिष्ट व्यक्तियों के लिए आने वाली चिट्ठियों के लिए जाना जाता रहा है। लुटियन जोन स्थित अहम मंत्रालयों और अतिविशिष्ट व्यक्तियों के नाम की चिट्ठी भी इसी डाकखाने से जाती है। लेकिन जुलाई 2014 के बाद से यहाँ प्रधानमंत्री के नाम चिट्ठियों की बाढ़ सी आ गई है। जहाँ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में प्रतिदिन करीब पांँच सौ से एक हजार चिट्ठियाँ आती थीं वहीँ मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इसमें कई गुना इजाफा हुआ है। आमतौर पर सुबह 11 बजे छंटनी कर डाक पीएमओ भेज दी जाती है। लेकिन कई बार दिन में दो बार भी चिट्ठियां पीएमओ पहुँचानी पड़ती हैं। चिट्ठियों की आवक देखते हुए डाक विभाग ने भी मुकम्मल इंतजाम किए हैं । प्रधानमंत्री के नाम आने वाले पत्रों की छंटाई और कंम्प्यूटर वर्गीकरण समेत अन्य इंतजामो को चुस्त करने के लिए दो सितंबर को पीएमओ और डाक विभाग के अधिकारियों के बीच एक बैठक भी हुई थी।
दरअसल प्रधानमंत्री मोदी जनता से सीधे संवाद पर खासा जोर देते हैं। उन्होंने तीन अक्टूबर को ’मन की बात’ कार्यक्रम के जरिए जनता से रेडियो संवाद की परंपरा शुरू की थी। साथ ही लोगों को सरकार के साथ अपने अनुभव, शिकायतें ई-मेल व पत्रों के जरिए भेजने को प्रोत्साहित भी किया था। प्रधानमंत्री ने जनता से मिले पत्रों और उनकी बातें पंसद आने पर अपने रेडियो संवाद में शामिल करने का भी वादा किया था। ऐसे में लोगों ने भी अपने मन की बात देश के मुखिया को चिट्ठियों के माध्यम से भेजनी आरम्भ कर दी। प्रधानमंत्री के नाम आने वाले पत्रों में जहाँ बड़ी संख्या सामाजिक संगठनों की है, वहीं दूर-दराज के गाँवों से आ रहे पत्रों की तादाद भी कम नहीं है। इंटरनेट के इस दौर में डाक से आ रही चिट्ठियों की संख्या डाक विभाग के लिए भी उत्साहजनक है, वहीं एक ख़त्म होती विधा 'पत्र लेखन' को जीवंत करने का प्रयास भी।
- कृष्ण कुमार यादव
निदेशक डाक सेवाएँ,
इलाहाबाद परिक्षेत्र, इलाहाबाद -211001
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