पहली बार न जाने किसने, मुझको ऐसा पत्र लिखा,
अपनेपन का संबोधन दे, मुझको अपना मित्र लिखा।
उसने लिखा कि प्रियवर मेरे
धीरज अपना मत खोना,
मिलते ही एकांत कहीं पर
फूट-फूट कर मत रोन।
जन्म-जन्म के संबंधों का ब्योरा बहुत विचित्र लिखा,
पहली बार न जाने किसने मुझको ऐसा पत्र लिखा।
फिर यह लिखा कि मन कन्चन मृग
इसके पीछे मत जाना
सुख-दुःख से ही बना हुआ है
दुनिया का ताना-बाना।
अग्निपरीक्षा जैसा ही कुछ, आंसू भरा प्रपत्र लिखा,
पहली बार न जाने किसने मुझको ऐसा पत्र लिखा।
यह भी लिखा दुःखी मत होना
तुम गीतों में जी लेना,
अपनी पीड़ा घुटन छिपा कर
सारे आंसू पी लेना।
फिर फिर कोने में तिथि अंकित की, घर का नाम पवित्र लिखा
पहली बार न जाने किसने मुझको ऐसा पत्र लिखा।
पढ़कर उसकी व्यथा कथा को
हम उस रात बहुत रोए
सदियां बीत गई हैं तब से
उसके बाद नहीं सोए।
जो कुछ लिखा, बहुत गहरा था, जैसे राम-चरित्र लिखा
पहली बार न जाने किसने मुझको ऐसा पत्र लिखा।
- राजकुमारी रश्मि
(साभार : सरस्वती सुमन पत्रिका)
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