Saturday, October 12, 2013

श्रृंगार-कक्ष की दीवारों से आरंभ हुआ डाक-टिकटों के संग्रह का शौक

भारतीय डाक विभाग द्वारा राष्ट्रीय डाक सप्ताह के तहत 12 अक्टूबर 2013 को फिलेटली दिवस के रूप में मनाया गया। इसका उद्देश्य इसका उद्देश्य डाक -टिकट संग्रह  के प्रति लोगों में अभिरूचि विकसित करना और डाक टिकटों के माध्यम से युवा पीढी को डाक सेवाओं के इतिहास से जोडना था।

फिलेटली दिवस पर इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं  कृष्ण कुमार यादव ने डाक-टिकटों के संग्रह की दिलचस्प कहानी के बारे में बताया कि उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में यूरोप में एक अंग्रेज महिला को अपने श्रृंगार-कक्ष की दीवारों को डाक टिकटों से सजाने की सूझी और इस हेतु उसने सोलह हजार डाक-टिकट परिचितों से एकत्र किए और शेष हेतु सन् 1841 में ‘टाइम्स आफ लंदन’ समाचार पत्र में विज्ञापन देकर पाठकों से इस्तेमाल किए जा चुके डाक टिकटों को भेजने की प्रार्थना की। इसके बाद धीमे-धीमे पूरे विश्व में डाक-टिकटों का संग्रह एक शौक के रूप में परवान चढ़ता गया। 

निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि हर डाक टिकट की अपनी एक कहानी है और इस कहानी को वर्तमान पीढ़ी के साथ जोड़ने की जरुरत है। उन्होंने डाक टिकटों को संवेदना का संवाहक बताया, जो पत्र के माध्यम से भावनाओं को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाते हैं। उन्होंने कहा कि सामान्यतः डाक टिकट एक छोटा सा कागज का टुकड़ा दिखता है, पर इसका महत्व और कीमत दोनों ही इससे काफी ज्यादा है । डाक टिकट वास्तव में एक नन्हा राजदूत है, जो विभिन्न देशों का भ्रमण करता है एवम् उन्हें अपनी सभ्यता, संस्कृति और विरासत से अवगत कराता है। 

डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने ने डाक टिकटों से युवाओं को जोडते हुए कहा कि डाक टिकटों के द्वारा ज्ञान भी अर्जित किया जा सकता है। यह हमारी शिक्षा प्रणाली को और भी मजबूत बना सकते हैं। लोगों को घर बैठे डाक-टिकटों के संग्रह से जोडने हेतु डाक विभाग ने फिलेटलिक डिपाजिट एकाउण्ट योजना भी आरम्भ की है, जिसके तहत यूनतम 200 रूपये से फिलेटलिक डिपाजिट एकाउण्ट‘‘ खोला जा सकता है और हर माह घर बैठे डाक टिकटें प्राप्त होती रहेंगी।  

इस अवसर पर बच्चों हेतु फिलेटलिक  वर्कशाप, पत्र लेखन प्रतियोगिता, पेंटिंग प्रतियोगिता और क्विज प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया। बच्चों ने जहाँ फिलेटलिक ब्यूरो में तमाम नए-पुराने डाक टिकटों को देखकर आनंद लिया वही तमाम ने खोलकर इससे हमेशा के लिए भी अपने को जोड  लिया।






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