9 अक्टूबर को ’’विश्व डाक दिवस’’ के रूप में मनाया जाता है। आज भले ही ई-मेल और एसएमएस का जमाना हो पर चिट्ठियां लोगों के जेहन से अभी भी नहीं उतरी हैं। हममें से कईयों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि प्रयाग को डाक सेवाओं की शुरूआत के लिए भी जाना जाता है। प्रयाग से ही प्रथम वायु, रेल व अन्य डाक सेवायें आरंभ हुयीं।
सामरिक रूप से महत्वपूर्ण होने के कारण ब्रिटिश शासन काल से ही अंग्रेजों ने इलाहाबाद में डाक सेवाओं की प्रमुखता पर जोर दिया। हवाई डाक सेवा दुनिया में सर्वप्रथम 18 फरवरी, 1911 को इलाहाबाद में आरंभ हुई। करीब साढे़ छः हजार पत्रों का थैला लेकर यह विमान इलाहाबाद के पोलो ग्राउन्ड से करीब 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नैनी रेलवे स्टेशन के पास के मैदान में उतरा था। फिर वहाँ से उन डाक को अन्य परिवहन साधनों से आगे भेजा गया। आंकड़ों के अनुसार कर्नल वाई विंधाम ने पहली बार हवाई मार्ग से कुछ मेल बैग भेजने के लिए डाक अधिकारियों से संपर्क किया जिस पर उस समय के डाक प्रमुख ने अपनी सहर्ष स्वीकृति दे दी। मेल बैग पर ‘पहली हवाई डाक’ और ‘उत्तर प्रदेश प्रदर्शनी, इलाहाबाद’ लिखा था। प्रत्येक पत्र के वजन को लेकर भी प्रतिबंध लगाया गया था और सावधानीपूर्वक की गई गणना के बाद सिर्फ 6,500 पत्रों को ले जाने की अनुमति दी गई थी। करीब 13 मिनट की इस हवाई यात्रा ने इतिहास रच दिया। इसके लिए दुनिया भर के विभिन्न हिस्सों के लिए लोगों ने पत्र लिखे थे, जिनमें से एक पत्र जवाहर लाल नेहरू के नाम उनके पिता मोती लाल नेहरू का भी था। कई ब्रिटिश अधिकारियों ने जार्ज पंचम को भी पत्र लिखे थे। उस एक दिन के लिए अलग से डाक मोहर भी बनवाई गई थी ।
रेलवे डाक सेवा का उदभव भी इलाहाबाद में ही हुआ माना जाता है। निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि रेल सेवा के आरम्भ होने के बाद इलाहाबाद और कानपुर के बीच अखिल भारतीय स्तर पर प्रथम बार रेलवे सार्टिंग सेक्शन की स्थापना 1 मई 1864 को की गई, जो कि कालान्तर में रेलवे डाक सेवा में तब्दील हो गया।
6 मई 1840 को ब्रिटेन में विश्व के प्रथम डाक टिकट जारी होने के अगले वर्ष 1841 में इलाहाबाद और कानपुर के मध्य घोड़ा गाड़ी द्वारा डाक सेवा आरम्भ की गई। इलाहाबाद के एक धनी व्यापारी लाला ठंठीमल, जिनका व्यवसाय कानपुर तक विस्तृत था को इस घोड़ा गाड़ी डाक सेवा को आरम्भ करने का श्रेय दिया जाता है, जिन पर अंग्रेजों ने भी अपना भरोसा दिखाया।
जी0टी0 रोड बनने के बाद उसके रास्ते भी पालकी और घोड़ा गाड़ी से डाक आती थी, जिसमें एक घोड़ा 7 किलोमीटर का सफर तय करता था। आधा तोला वजन का एक पैसा किराया तुरन्त भुगतान करना होता था। इलाहाबाद से बिठूर तक डाक का आवागमन गंगा नदी के रास्ते से होता था। डाक हरकारे जंगल से होकर गुजरते थे इसलिए सुरक्षा के लिहाज से कमर में घंटी और हाथ में भाला लिए रहते थे। सन् 1850 में लाला ठंठीमल ने कुछ अंग्रेजों के साथ मिलकर ‘इनलैण्ड ट्रांजिट कम्पनी’ की स्थापना की और इलाहाबाद के बाद कलकत्ता से कानपुर के मध्य घोड़ा गाड़ी डाक व्यवस्थित रूप से आरम्भ किया। अगले वर्षों में इसका विस्तार मेरठ, दिल्ली, आगरा, लखनऊ, बनारस इत्यादि प्रमुख शहरों में भी किया गया। इलाहाबाद की अवस्थिति इन शहरों के मध्य में होने के कारण डाक सेवाओं के विस्तार के लिहाज से इसका महत्वपूर्ण स्थान था। इस प्रकार लाला ठंठीमल को भारत में डाक व्यवस्था में प्रथम कम्पनी स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। 1854 में डाक सेवाओं के एकीकृत विभाग में तब्दील होने पर इनलैण्ड ट्रांजिट कम्पनी’ का विलय भी इसमें कर दिया गया।
Picture 1: Krishna Kumar Yadav, Director Postal Services, Allahabad standing before Hexagonal Penfold Letter Box (1872) at Allahabad Head Post Office.
Picture 2 : Picture of Lala Thanthimal, A rich merchant of Allahabad who started a horse-cart mail service between
Allahabad and Kanpur in 1841.
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