डाक का महत्व प्राचीन काल से ही रहा है. उस समय एक राजा दूसरे राज्य के राजा तक अपना संदेश एक विशेष व्यक्ति जिसे दूत कहा जाता था, के माध्यम से भेजते थे. उन दूतों को राज्य की ओर से सुरक्षा तथा सम्मान प्रदान किया जाता था. महाकाव्य रामायण तथा महाभारत में कई प्रसंगों में संदेश भेजे जाने का उल्लेख प्राप्त होता है. राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता और राम के विवाह होने का संदेश राम के पिता दशरथ को भिजवाया था. रावण की राजसभा में श्रीराम का सन्देश लेकर अंगद का जाना, इस बात का प्रमाण है.. महाभारत में श्रीकृष्ण का कौरवों के लिए पांच गांव मांगने जाना तथा अनेक राज्यों में पांडवों तथा कौरवॊं के पक्ष में, युद्ध में भाग लेने के लिए संदेश पहुँचाना, जैसी कोई डाक व्यवस्था उस समय काम कर रही होगी.
अन्य प्रसंगों में राजा नल द्वारा दमयन्ती के बीच सन्देशों का आदान-प्रदान हंस द्वारा होने का वर्णण आता है. महाकवि कालीदास के मेघदूत में दक्ष अपनी प्रेमिका के पास मेघों के माध्यम से सन्देश पहुँचाते थे. एक प्रेमी राजकुमार अपनी प्रेमिका को कबूतरों द्वारा पत्र पहुँचाते थे. खुदाई के दौरान कुछ ऐसी महत्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं कि मिस्र, यूनान एवं चीन में डाक व्यवस्था थी. सिकन्दर महान ने भारत से यूनान तक संचार व्यवस्था बनाई थी, जिससे उसका संपर्क यूनान तक रहता था. अनेक राजा-महाराजा एक स्थान से दूसरे स्थान तक सन्देश पहुंचाने के लिए द्रुतगति से दौडने वाले घोडॊं का प्रयोग किया करते थे.
यह सब कालान्तर की बातें तो है ही, साथ ही रोचक भी है. इसका प्रयोग केवल उच्च वर्ग तक ही सीमित था. साधारण जन इससे कोसों दूर था. बाद मे कई प्रयास किए गए और डाक व्यवस्था में निरन्तर सुधार आता गया और आज यह व्यवस्था आम हो गई है.
१ अक्टूबर सन १८५४ को पहला भारतीय डाक टिकिट जारी किया गया था. उस समय तक पोस्टकार्ड की कल्पना भी नहीं की गई थी. सन १८६९ में आस्ट्रिया के डाक्टर इमानुएल हरमान ने पत्राचार के एक सस्ते साधन के रुप में पोस्टकार्ड की कल्पना की थी. भारत में पहली बार १ जुलाई १८७९ को पोस्टकार्ड जारी किए गये. जिसकी डिजाइन और छपाई का कार्य मेसर्स थामस डी.ला.रयू. एण्ड कंपनी लंदन ने किया था. उसके दो मूल्य वर्ग थे. एक पैसा( उस समय एक आने में चार पैसे हुआ करते थे) मुल्य का कार्ड अन्तरदेशीय प्रयोग के लिए था और देढ-आना वाला कार्ड ,उन देशों के लिए था जो “अंतरराष्ट्रीय डाक संघ” से संबद्ध थे.
पहले पोस्टकार्ड मध्यम हलके भूरे से रंग में छपे थे. एक पैसे वाले कार्ड पर “ ईस्ट इण्डिया पोस्टकार्ड” छपा था. बीच में ग्रेट ब्रिटेन का राज चिन्ह मुद्रित था और ऊपर की तरफ़ दाएं कोने मे लाल-भूरे रंग में छपी ताज पहने साम्राज्ञी विक्टोरिया” की मुखाकृति थी. विदेशी पोस्टकार्ड में ऊपर अंग्रेजी और फ़्रेंच भाषाओं में” यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन” अंकित था. इसके नीचे दो पंक्तियों में अंग्रेजी में क्रमशः “ब्रिटिश इण्डिया” और” पोस्टकार्ड” और इसका फ़्रेंच रुपान्तर तथा इन दोनों के बीच में ब्रिटेन का राजचिन्ह मुद्रित था एवं ऊपर दाहिने कोने पर टिकिट होता था. टिकिट और लेख नीले रंग में थे. दोनों ही प्रकार के कार्डॊ में अंग्रेजी में” दि एड्रेस ओनली टु बी रिटेन दिस साईड” छपा था.
पोस्टकार्ड में कई परिवर्तन हुए. १८९९ में “ईस्ट” शब्द हटा दिया गया और उसके स्थान पर “ इण्डिया पोस्ट कार्ड” मुद्रित होने लगा.
दिल्ली के सम्राट जार्ज पंचम के राज्याभिषॆक की स्मृति में सन १९११ में केन्द्रीय और प्रान्तीय सरकारों ने सरकारी प्रयोग के लिए विशेष पोस्टकार्ड जारी किए थे. इन पर “ पोस्टकार्ड” शब्द मुद्रित था,परन्तु टिकिट का कोई चिन्ह अंकित नहीं था. इन पर “ताज” और “ जी.आर.आई” मोनोग्राम सुनहरे रंग में और दिल्ली तथा विभिन्न प्रांतों के बीच के प्रतीक-चिन्ह ,भिन्न-भिन्न रंगों से इम्बासिंग पद्धति से मुद्रित थे.
स्वतंत्रता के बाद चटकीले हरे रंग में “त्रिमूर्ति” की नयी डिजाइन के टिकिट वाला प्रथम पोस्टकार्ड ७ दिसम्बर १९४९ को जारी किया गया था. सन १९५० में कम डाक दर( ६ पाई) के स्थानीय़ पोस्टकार्ड जारी किए गए, जिन पर कोणार्क के घोडॆ की प्रतिमा पर आधारित टिकिट की डिजाइन चाकलेट रंग में छपी थी. २ अक्टूबर १९५१ को तीन चित्र पोस्ट्कार्डॊं की एक श्र्रृंखला जारी की गई,जिसमें एक पर बच्चे को लिए हुए गांधीजी, दूसरे पर चर्खा चलाते हुए गांधीजी और तीसरे पर कस्तूरबा गांधी के साथ गांधीजी का चित्र अंकन था. २ अक्टूबर १९६९ को गांधी शताब्दी के उपलक्ष में तीन पोस्टकार्डॊं की दूसरी श्रृंखला निकाली गई, जिसमें गांधीजी और गांधीजी की मुखाकृति अंकित थी.
जबसे पोस्टकार्डॊं का प्रचलन हुआ है, तभी से जनता के पत्र-व्यवहार का माध्यम ये पोस्ट्कार्ड रहे हैं. हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी ये काफ़ी लोकप्रिय है. इस समय प्रतिवर्ष अरबों की संख्या में पोस्टकार्ड देश के एक छोर से दूसरे छोर तक, देशवासियों को भातृत्व के बंधन में बांधने का कार्य करते हैं.
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