दीपावली सिर्फ घरों को जगमगाने वाला पर्व नहीं है बल्कि यह मानव हृदय को आलोकित करने वाला पर्व भी है। हमारी परम्परा एक तरफ दीपावली के दिन घरों को साफ-सुथरा कर गणेश-लक्ष्मी के रूप में सुख-समृद्धि का आह्वान करती है, वहीं रात के अंधियारे में आशाओं के दीप जगमगाते हैं तो निराशा के काले घने बादल स्वमेव छँटते जाते हैं।
दीपावली जहाँ मन से विकार, कटुता, निराशा, अवसाद और अन्य नकारात्मक प्रवृत्तियों को बाहर निकालती है, वहीँ दीये की रोशनी तमाम कीट-पतंगों और गन्दगी को ख़त्म करती है।
दीपावली एक सामाजिक त्यौहार है, इसके साथ कइयों की रोजी-रोटी जुडी हुई है। 'ज्योत से ज्योत जलाते चलो' की परम्परा में एक दीया हजारों दीयों को रोशन कर सकता है, पर झालर और बल्ब दूसरे झालरों और बल्बों को रोशन नहीं कर सकते।
दीपावली सुख, स्वास्थ्य और सामाजिक सद्भाव का पर्व है। पर पटाखों के शोर-शराबे के बीच फैलता प्रदूषण और हानिकारक कीटों को आमंत्रित करती विदेशी झालरें और इन सब पर व्यय किये गए करोड़ों रूपये इस पवित्र त्यौहार के मूल भाव को ही ख़त्म करने पर तुले हैं। आतिशबाजी और पटाखों की आड़ में खर्च होने वाले करोड़ों रूपये किसी गरीब व्यक्ति को दो वक़्त की रोटी दे सकते हैं। विदेशी आतिशबाजी से दूर रहकर न केवल प्रदूषण से निजात पाया जा सकता है, बल्कि निज बंधुओं के जीवन में खुशियाँ भी भरी जा सकती है।
!! आप सभी को दीपावली पर्व पर सपरिवार शुभकामनाएँ !!
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