(कविवर सोहन लाल द्विवेदी ने भी डाकिया को अपने शब्दों में ढाला है। मार्च 1957 में प्रकाशित उनकी कविता ‘पोस्टमैन‘ वाकई एक बेहतरीन कविता है। )
किस समय किसे दोगे क्या तुम
यह नहीं किसी को कभी ज्ञान
उत्सुकता में, उत्कंठा में
देखा करता जग महान
आ गई लाटरी निर्धन की
कैसी उसकी तकदीर फिरी
हो गया खड़ा वह उच्च भवन
तोरण, झंडी सुख की फहरी
यह भाग्य और दुर्भाग्य
सभी का फल लेकर तुम जाते
कोई रोता कोई हँसता
तुम पत्र बाँटते ही जाते
इस जग का सारा रहस्य
तुम थैले में प्रतिदिन किए बंद
आते रहते हो तुम पथ में
विधि के रचते से नए छंद।
6 comments:
डाकिये की महत्ता का सुंदर वर्णन! कविता पुरानी जरूर है, लेकिन उत्साह भरी! धन्यवाद!
यह भाग्य और दुर्भाग्य
सभी का फल लेकर तुम जाते
कोई रोता कोई हँसता
तुम पत्र बाँटते ही जाते
....सोहन लाल जी की कविता पढ़कर दिल खुश हो गया.बरसों पहले लिखी यह कविता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है.
कविवर सोहन लाल द्विवेदी की कविता आपके ब्लॉग पर पढ़कर दिल प्रसन्न हो गया. बेहद सराहनीय प्रयास है.
कविवर सोहन लाल द्विवेदी की कविता आपके ब्लॉग पर पढ़कर दिल प्रसन्न हो गया. बेहद सराहनीय प्रयास है.
इस जग का सारा रहस्य
तुम थैले में प्रतिदिन किए बंद
आते रहते हो तुम पथ में
विधि के रचते से नए छंद।........
kamaal ki rachna hai
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